भगवत गीता के अध्याय 15, श्लोक 14 का यह श्लोक इस प्रकार है:
Sanskrit:
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित:।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।
Hindi :
अर्थ: "मैं सभी प्राणियों के शरीर में स्थित वैश्वानर अग्नि के रूप में प्रकट होकर, प्राण (श्वास) और अपान (उच्छ्वास) के संयोग से चार प्रकार के आहार को पचाता हूँ।"
व्याख्या: इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण यह बता रहे हैं कि वे सभी जीवों के शरीर में पाचन अग्नि (वैश्वानर अग्नि) के रूप में निवास करते हैं। वे प्राण (अंदर की हवा) और अपान (बाहर की हवा) के मिलन से चार प्रकार के आहारों को पचाते हैं। यहाँ चार प्रकार के आहार का अर्थ है – ठोस, तरल, अर्ध-ठोस, और अन्य प्रकार के आहार जो हम खाते हैं। भगवान श्री कृष्ण इस श्लोक के माध्यम से यह दर्शाते हैं कि वे न केवल सृष्टि के रचनाकार हैं, बल्कि हमारे शरीर के आंतरिक कार्यों में भी सक्रिय रूप से मौजूद हैं, जैसे कि पाचन प्रक्रिया।
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